Great Swami Dayananda Saraswati Life History

आज हम Swami Dayananda Saraswati और आर्य समाज के बारे में बात करेंगे. Swami Dayananda Saraswati के इंडियन फिलॉस्फर्स सोशल लीडर और Founder of Arya Samaj थे।

Arya Samaj Was Founded By Swami Dayananda Saraswati आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती

swami dayananda saraswati
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Short Note On Swami Dayananda Saraswati

  • Swami Dayananda Saraswati ने Arya Samaj ki Sthapna की थी।
  • Swami Dayananda Saraswati का जन्म 12 फरवरी सन् 1824 में हुआ।
  • तिथि के अनुसार फल्गुन मास की कृष्ण दशमी के दिन उनका जन्म हुआ था।
  • उनकी माता का नाम अमृतबाई और पिता का नाम अंबाशकर था।
  • उन्होंने 1846, 21 वर्ष की आयु में गुरु विरजानंद से दीक्षा ली।
  • शुद्धि आंदोलन चलाने और अंग्रेजों से जमकर लौहा लेने के कारण एक षड्यंत्र के तहत उन्हें जहर दे दिया गया।
  • जहर देने के बाद 30 अक्टूबर 1883 को दीपावली के दिन संध्या के समय उनकी मृत्यु हो गई।

Swami Dayananda Saraswati Early Life and Education

Swami Dayananda Saraswati का जन्म 12 फरवरी, 1824 को भारत के गुजरात के एक छोटे से शहर टंकारा में मूल शंकर के रूप में हुआ था। बचपन में इनका नाम Original name of Swami Dayananda Saraswati मूल शंकर तिवारी था। उन्होंने अपने पिता को कम उम्र में खो दिया था और उनकी मां और चाचा ने उनका पालन-पोषण किया था। उन्होंने एक स्थानीय स्कूल में अपनी औपचारिक शिक्षा शुरू की, लेकिन सीखने के उनके जुनून ने उन्हें घर छोड़ दिया और एक घूमने वाले सन्यासी बन गए।

Swami Dayananda Saraswati Spiritual Journey

इनकी चाचा की मृत्यु के बाद इनको यह सोचने में मजबूर कर दिया कि जीवन और मृत्यु है क्या। इसी बात का पता लगाने के लिए उन्होंने  घर छोड़ दिया और पूरे देश में भ्रमण करते रहे। 15 साल तक भ्रमण करने के बाद अंत में इनको इनके गुरु मथुरा में मिले। जिनका नाम था Virajanand Dandee Swami। फिर यह Virajanand Dandee Swami के साथ ही रहने लगे और उन्होंने वेदों का और योग का प्रशिक्षण लिया।

Swami Dayananda Saraswati ने वेदों, उपनिषदों और भगवद गीता सहित विभिन्न धार्मिक ग्रंथों और परंपराओं का अध्ययन करने में कई साल बिताए।
नर्मदा नदी के तट पर ध्यान करते हुए उन्हें आध्यात्मिक जागृति हुई और उन्होंने वेदों के अध्ययन और अध्यापन के लिए अपना जीवन समर्पित करने का फैसला किया।

इस तरह मूल शंकर तिवारी महर्षि दयानंद सरस्वती बन गए।

उनके गुरु का मानना था कि हिंदू धर्म अपने रास्ते से भटक गया है और बहुत सारी कुछ ऐसे मान्यताओं के कारण हमारा हिंदू धर्म हिंदू धर्म अपने रास्ते से भटकने के साथ-साथ अपवित्र भी हो गया है। इसे पवित्र करने के लिए हमारे पुराने वैदिक तरीके को आजमाना बहुत जरूरी है, वैदिक तरीके से ही इसको पवित्र किया जा सकता है।

Swami Dayananda Saraswati Life History

Swami Dayananda Saraswati ने अपने गुरु को वचन दिया कि वह इस दायित्व को आगे बढ़ाते हुए हमारे हिंदू धर्म को फिर से पवित्र करेंगे। ऐसा वचन दे कर वो अपनी मंजिल की ऒर निकल पड़े। Swami Dayananda Saraswati जानते थे की हमारा हिंदू धर्म सिर्फ वेदों के ही कारण एक महान धर्म हुआ करता था फिर समय के साथ साथ उपनिषद ,पुराण, अरियांथस , वेदांतस को वेदो का हिस्सा मन लिया गया। या ये भी कहा जा सकता है के इन्हे भी वेदो का दर्जा दिया जाने लगा।

Swami Dayananda Saraswati ने साफ कह दिया कि उपनिषद पुराण यह सारे वेदों का हिस्सा नहीं है, और हिंदुइज्म सिर्फ वेद है यह कहकर उन्होंने आर्यं और सनातन धर्म के बीच में के मध्य में एक रेखा खींच दी। उन्होंने कहा कि आप अगर सिर्फ वेदों को मानते हैं तो आप आर्य हैं और अगर आप वेदों के साथ-साथ पुराण, उपनिषद, इन सब चीजों को मानते हैं तो आप सनातनी हिंदू है।

Swami Dayananda Saraswati ने ” बैक टो वेदास” नारा दिया। उन दिनों अंग्रेज हम पर अपना वेस्टर्न कल्चर थोपे जा रहे थे। और हमें यह समझाने की कोशिश कर रहे थे की अंग्रेजों का कल्चर सबसे ज्यादा बेहतर है। और तो और भारतीय कल्चर को बहुत हीन भावना से देखा जाता था। उसी समय दयानंद के द्वारा दिया गया स्लोगन बैक टो वेदास ने अपना काम जमकर किया। इससे लोगों को यह पता चला कि हम भी एक महान सभ्यता के वंशज है। इस वजह से हिंदू सभ्यता के लोग के अंदर एक अलग ही उत्साह जागी अब हिंदू भी गर्व से कह सकता था कि हम एक महान सभ्यता के वंशज है।

अब Swami Dayananda Saraswatiको एक ऐसा भारत दिखने लगा था जिसमें सब लोग एक ही धर्म को मानते हैं। किसी भी जात पात के आडंबर में फंसे हुए नहीं है। जो कि किसी का गुलाम नहीं है। सब एक ही धर्म को मानते हैं जोकि है आर्य धर्म। उन्होंने अपने यह सारे विचार अपनी बुक सत्यार्थ प्रकाश में लिखे हुए थे। सत्यार्थ प्रकाश का मतलब है द truth एक्सपोजिशन।

सत्यार्थ प्रकाश 18075 में पब्लिश हुई थी। इस बुक में उन्होंने उस समय के बहुत सारे मुद्दों पर अपनी राय दी थी। उन्होंने छुआछूत का सिस्टम और चाइल्ड मैरिज बाल विवाह जैसे मुद्दों पर बात की थीऔर उन्हें नकार दिया था। उन्होंने शादी के लिए लड़कों की उम्र 25 साल और लड़कियों की उम्र 16 साल बताई थी। उन्होंने में औरतों को समाज में बराबरी का दर्जा देना चाहिए के बारे में भी बात की थी। साथ ही साथ इंटर कास्ट मैरिज और विधवा पुनर्विवाह के बारे में भी बात की और उस को बढ़ावा देने चाहिए।

Swami Dayananda Saraswati Satya Prakash Book

सत्यार्थ प्रकाश आर्य समाज आंदोलन का एक धार्मिक ग्रन्थ है। यह 1875 में आर्य समाज के संस्थापक Swami Dayananda Saraswati द्वारा लिखा गया था। पुस्तक का शीर्षक अंग्रेजी में “सत्य का प्रकाश” है।

पुस्तक आर्य समाज आंदोलन की शिक्षाओं की एक व्यापक व्याख्या है। यह 14 अध्यायों में विभाजित है, जिनमें से प्रत्येक वैदिक शास्त्रों के एक विशेष पहलू से संबंधित है। पुस्तक हिंदी में लिखी गई है, लेकिन इसका अनुवाद आर्य समाज के विद्वानों और अनुयायियों द्वारा अंग्रेजी सहित विभिन्न भाषाओं में किया गया है।

सत्यार्थ प्रकाश हिंदू धर्म की एक दृष्टि प्रस्तुत करता है जो वेदों की शिक्षाओं पर आधारित है। यह जाति व्यवस्था के अधिकार को खारिज करता है और सामाजिक समानता के महत्व पर जोर देता है। पुस्तक महिलाओं के अधिकारों और बाल विवाह के उन्मूलन की भी वकालत करती है। यह स्वदेशी, या आत्मनिर्भरता के विचार को बढ़ावा देता है और भारतीय वस्तुओं और उत्पादों के उपयोग को प्रोत्साहित करता है।

पुस्तक आर्य समाज आंदोलन में एक प्रभावशाली पाठ रही है और इसने भारत में वैदिक शिक्षाओं के पुनरुद्धार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसकी स्पष्टता और जटिल दार्शनिक विचारों को सरल और सुलभ तरीके से प्रस्तुत करने की इसकी क्षमता के लिए इसकी प्रशंसा की गई है।

हालाँकि, अन्य हिंदू धर्मग्रंथों, जैसे पुराणों और भगवद गीता को अस्वीकार करने के लिए इस पुस्तक की आलोचना भी की गई है। कुछ विद्वानों ने तर्क दिया है कि पुस्तक वेदों की एक संकीर्ण और चुनिंदा व्याख्या प्रस्तुत करती है और यह हिंदू धर्म की विविधता को ध्यान में नहीं रखती है।

इन आलोचनाओं के बावजूद, सत्यार्थ प्रकाश आर्य समाज आंदोलन में एक महत्वपूर्ण पाठ बना हुआ है और इसने अपने अनुयायियों की धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

आर्य समाज के लोग जातिप्रथा, छुआछूत, अंधभक्ति, मूर्तिपूजा, बहुदेववाद, अवतारवाद, पशुबलि, श्राद्ध, जंत्र, तंत्र-मंत्र, झूठे कर्मकाण्ड आदि के सख्त खिलाफ है आर्य समाज। आर्य समाज के लोग पुराणों की धारणा को नहीं मानते हैं और एकेश्‍वरवाद में विश्वास करते हैं।

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FAQ’S

Original name of swami dayananda saraswati?

Swami Dayanand Saraswati’s original name was Mool Shankar Tiwari

Swami dayananda saraswati jayanti?

15 feb, 2023

Birth of Dayananda Saraswati February 12, 1824

Swami dayananda saraswati books?

1. सत्यार्थ प्रकाश (Satyarth Prakash 1875 and 1884)
2. संस्कृत वाक्य प्रबोधः (Sanskrit Vakyaprabodhini 1879)
3. गोकरुणानिधि (GokarunaNidhi 1880)
4. आर्योद्देश्य रत्न माला (AaryoddeshyaRatnaMaala 1877)
5. ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका (RigvedAadibBhasyaBhumika 1878)
6. व्यवहारभानु (VyavaharBhanu 1879)
7. चतुर्वेद विषय सूची (Chaturved Vishay Suchi 1971)
8. ऋग्वेद भाष्य, यजुर्वेद भाष्य, अष्टाध्यायी भाष्य (Rigved Bhashyam 1877 to 1899, Yajurved Bhashyam 1878 to 1889 and Asthadhyayi Bhashya 1878 to 1879)
9. भागवत खंडन/ पाखंड खंडन/ वैष्णवमत खंडन (Bhagwat Khandnam/ Paakhand Khandan/ Vaishnavmat Khandan 1866)
10. पञ्च महायजना विधि (Panchmahayajya Vidhi 1874 and 1877)

Arya Samaj Founder?

Swami Dayananda Saraswati

 

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